AMO MI HOGAR
Amo mi
hogar,
porque allí
paso los días en feliz compañía de mis seres queridos,
porque allí
sufro, me alegro, reniego, me sosiego,
por que allí
aprendo a compartir y a perdonar.
Amo mi
hogar porque allí escucho música, me relajo,
porque
convivo con mis familiares y Pipo mi lindo gato.
Amo, mi
dulce morada
porque allí
comparto los alimentos con los míos,
conversamos
en la mesa
y
compartimos entre todos nuestras vivencias diarias.
¡Ah, no hay
mejor medicina relajante que mi hogar!
No hay mejor
paño de consuelo,
mi mejor
estufa abrigadora de cariño.
Allí fui,
niña adolescente y luego crecí
rodeada del
afecto de mis padres.
Un día
quisiera morir en los brazos de mi hogar
pues allí
dejé todo lo mejor de mí,
allí fui yo,
sin caretas ni doblez.
Allí paso de
débil niña a una valiente heroína,
porque allí
me siento segura y amada,
porque el hogar es donde está el
corazón.
Autora:.Edith Elvira Colqui
Rojas-Derechos reservados
Translation of a lovely poem of Dear poetess Edith Elvira Colqui Rojas into Hindi language
Poetess: Dear Edith Elvira Coloqui Rojas
Translator: DrNavinkumar Upadhyay
Translator: DrNavinkumar Upadhyay
मुझे पसंद है अपना घर
मुझे अपने घर से है प्यार ,
रहते हम यहाँ सहित अपने परिवार,
भले हम रहें दुखी, लेकिन रहते हम खुश,
मानते न किसी की ,रहते सदा शांत, कभी न नाखुश।
हम मान भी जाते कहीं, बाँधते न गांठ।
करते हम गृह से प्यार, सुनते संगीत, करते आराम,
रहते संग परिजन, साथ रहती मार्जारी,
प्यारा है मेरा घर ,निवास है प्यारी,
परिवार साथ हम करते अपना उदर पोषण,
मेज पर हम करते आपस में संभाषण,
दैनिक अनुभवों की करते आपस में हम वार्तालाप ,
गेह से बेहतर न कहीं भेषज संग संलाप,
कहीं न कोई बसन ,जो ढक सके दुख बदन,
कहीं न मिल पाता स्नेहिल तप्त आवरण,
किशोरावस्था मिली,धीरे धीरे बड़े हुए,
माता-पिता के लाड़ -दुलार स्नेह से घिरे।
मरना भी चाहूँगा,अपने गृह स्नेह बाहों मेंं,
छोड़ दिया अपने आपको सबसे सुखद राहों मेंं,
कभी न नकाब था,न झुकना था यहाँ,
अबला से बन गई अब वीरांगना नायिका,
सब बिधि सुरक्षित,सब कार्य सहायिका।
घर ही मेरा दिल, घर ही मेरे प्राण निवास,
'नवीन'मन मेरा चाहता, छोड़ना नहीं वास।
रहते हम यहाँ सहित अपने परिवार,
भले हम रहें दुखी, लेकिन रहते हम खुश,
मानते न किसी की ,रहते सदा शांत, कभी न नाखुश।
हम मान भी जाते कहीं, बाँधते न गांठ।
करते हम गृह से प्यार, सुनते संगीत, करते आराम,
रहते संग परिजन, साथ रहती मार्जारी,
प्यारा है मेरा घर ,निवास है प्यारी,
परिवार साथ हम करते अपना उदर पोषण,
मेज पर हम करते आपस में संभाषण,
दैनिक अनुभवों की करते आपस में हम वार्तालाप ,
गेह से बेहतर न कहीं भेषज संग संलाप,
कहीं न कोई बसन ,जो ढक सके दुख बदन,
कहीं न मिल पाता स्नेहिल तप्त आवरण,
किशोरावस्था मिली,धीरे धीरे बड़े हुए,
माता-पिता के लाड़ -दुलार स्नेह से घिरे।
मरना भी चाहूँगा,अपने गृह स्नेह बाहों मेंं,
छोड़ दिया अपने आपको सबसे सुखद राहों मेंं,
कभी न नकाब था,न झुकना था यहाँ,
अबला से बन गई अब वीरांगना नायिका,
सब बिधि सुरक्षित,सब कार्य सहायिका।
घर ही मेरा दिल, घर ही मेरे प्राण निवास,
'नवीन'मन मेरा चाहता, छोड़ना नहीं वास।
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